मनीष शर्मा
रतनगढ़. सियासत के मैदान में इन दिनों भाजपा दो गुटों में है। ये गुट भी उस स्थिति में सामने आए हैं जब भाजपा के कद्दावर नेता एवं उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ के जन्म दिवस पर भाजपा के दो जगह कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसमें एक मूल भाजपा के पदाधिकारी दूसरी तरफ कई दलों की सैर करके आए वर्तमान भाजपा विधायक अभिनेष महर्षि। राठौड़ के जन्मदिन पर आयोजित रक्तदान शिविर को मानव सेवा दिवस के रूप में मनाया गया था। लेकिन भाजपा की धड़ेबंदी से रतनगढ़ में आगामी चुनावी तस्वीर भी पानी की तरह साफ नजर आ रही है। रतनगढ़ में भाजपा के एक गुट ने पौद्दार गेस्ट हाउस में 1327 यूनिट ब्लड डोनेट कर राठौड़ का जन्मदिवस मनाया और 200 गाडिय़ों के काफिले के साथ पोदर गेस्ट हाउस पहुंच कर भरपालसर सरपंच दातार सिंह एवं कुसुमदेसर सरपंच प्रतिनिधि पवनसिंह ने युवाओं का ब्लॅड डोनेशन करवाया।
दूसरी ओर विधायक अभिनेष महर्षि ने अपने पुराने कांग्रेस-बसपा के साथियों के साथ मिल कर राठौड़ के धुर विरोधी भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश कोषाध्यक्ष चूरू निवासी पंकज गुप्ता के सम्मान में अपने आवास पर भोज का कार्यक्रम रख दिया। इस कार्यक्रम को भी सम्मान समारोह का नाम दिया। इससे साफ हो गया कि विधायक महर्षि ने अपनी तरफ से मूल भाजपाईयों के रक्तदान शिविर को पूरी तरह से फैल करने की कोशिश की गई लेकिन उनकी ये रणनीति सफल नहीं हो पाई। पोद्दार गेस्ट हाउस में शहर मण्डल के नेतृत्व में आयोजित रक्तदान शिविर में भाजपा के पूर्व देहात अध्यक्ष भागीरथ सिंह राठौड़ की अगुवाई में रक्तदाताओं के लिए माकूल व्यवस्थाएं की गर्इं। मूल भाजपाईयो में पूर्व चैयरमैन शिवभगवान कम्मा, सरंपच गिरधारी लाल, सरंपच हरिप्रसाद दायमा, जिला परिषद् सदस्य मालीराम सारस्वत, पूर्व सरंपच दीनदयाल पारीक , पूर्व सरंपच भजनदास स्वामी, शहर मण्डल अध्यक्ष अरविन्द इन्दौरिया एवं एडवोकेट बजरंग गुर्जर ने रक्तदान शिविर को सफल बनाने में अपनी तरफ से कोई कोर कसर नही छोड़ी। इन कृत्यों से साफ हो गया कि आने वाले समय में भाजपा के खेमे में बड़ा भूचाल आने वाला है। जिसका सीधा संकेत भाजपा की खुलकर सामने आई गुटबंदी है।
भाजपा का ये द्वंद्व आम आदमी की जुबां पर है। ये राजनीतिक उठाप-पटक का द्वंद्व नया नही बल्कि बल्कि गत पंचायत चुनाव के वक्त ही शुरू हो चुका था, लेकिन राजनीति का खेल निराला है। तब विधायक अभिनेष महर्षि और पंकज गुप्ता एक दूसरे के आमने-सामने थे। मूल भाजपाईयो को संगठन की पूंजी बताने वाले पंकज गुप्ता ने टिकट वितरण में मूल भाजपाईयों की खूब पैरवी की थी। भजनदास स्वामी , श्योपाल मेघवाल और अुर्जन सिंह फ्रांसा की टिकट चुनाव चिन्ह जमा करातें समय बदल दिये जाने पर पकंज गुप्ता और विधायक अभिनेष महर्षि में तीखी नोंक-झोंक भी हुई थी। राजनीति ऐसी है कि इसमें समीकरण बदलते में देर नहीं लगती। पंकज गुप्ता संगठन के घोषित मानव सेवा के रक्तदान शिविर के कार्यक्रम को छोड़कर विधायक आवास पर उनके व्यक्तिगत प्रोग्राम में शरीक होने पहुंच गए जो कि राजनैतिक हलको में चर्चा का विषय बना हुआ है।
जिले के हालात से रूबरू लोग भलीभांति जानते है कि भाजपा जिले में रामसिंह कस्वां एवं राजेन्द्र राठौड़ गुट खेमों में पहले से ही अलग-अलग बंटे हुए है। पंकज गुप्ता का पुराना नाता रिश्ता रामसिंह के साथ रहा है, लेकिन बदले समीकरणों में गुप्ता प्रदेषाध्यक्ष डॉ. सतीष पूनियां के खेमे में आ गए। इसमें गौर करने वाले बात ये है कि कुछ माह पूर्व पूनियां के जन्मदिवस पर जयपुर में आयोजित कार्यक्रम में विधायक अभिनेष महर्षि द्वारा चढ़ कर भाग लेने और पूर्व मुख्यमंत्री वंसुधरा राजे के जन्म दिवस से दूरी बनाने के कारण गुप्ता एवं विधायक में नजदीकिया आ गई है। वहीं पकंज गुप्ता मूल भाजपाईयों की बली चढानें में विधायक अभिनेष महर्षि के साथ खड़े हो गए है। विधायक महर्षि का खेमा मूल भाजपाईयो को फूटी कोड़ी नहीं सुहाता है। यही नहीं विधायक समर्थक सोशल मीडिया पर असंसदीय टिपणियां करने से नहीं चूक रहे। क्षेत्र में पूर्व उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा के पुत्र सुरेन्द्र भाभड़ा की रतनगढ़ में मौजदूगी से भी सियासी खेमे में हलचल मची हुई है। सुरेन्द्र भाभड़ा की उपस्थितियां विधायक महर्षि को नगवार लग रही है। इन दिनों पूर्व मंत्री राजकुमार रिंणवा की भाजपा में वापसी की चर्चाओं ने विधायक अभिनेष महर्षि की नींद हराम कर रखी है।
मूल भाजपाई टीम वर्क के साथ विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय है। ऐसे में विधायक महर्षि के लिए मूल भाजपा की सक्रियता किसी संकट से कम नजर नहीं आ रही है। इस संकट से निपटने के लिए महर्षि ने कांग्रेस नेता रफीक मण्डेलिया से सांठगांठ कर पंचायत चुनाव में हिम्मत सिंह मालासी को प्रधान का कण्डीडेट घोषित कर दिया। परिणाम ये निकला कि भाजपा के खेमे में आने वाली प्रधान की सीट कांग्रेस ने हथिया ली। ये तो राजनीतिक पर्दे के पीछे की कहानी है जो जनता की जुबां पर है। यही फार्मूला विधायक ने नगरपालिका के चुनाव में भी आजमाया। ऐसे व्यक्ति को टिकट देकर दूसरे वार्ड में भेज दिया जिनकी जमीनी पकड़ जीरो थी। परिणाम ये निकला कि नगरपालिका में भाजपा आठ सीटों पर ही सिमट कर रह गई। कांग्रेस ने अपना बोर्ड बना लिया। भाजपा को कमजोर करने की विधायक की इस रणनीति को भांपकर अब संगठन के पदाधिकारियों ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मिशन 2023 को लेकर विधायक महर्षि मूल भाजपा कार्यकर्ताओं को दर किनार कर अपने कांग्रेस-बसपा के पुराने साथियो का एक अलग गुट बनाकर दूसरी पारी खेलने की तैयारी में लग गए हैं। बहरहाल ये कहना तो जल्दबाजी होगी की ऊंट किस करवट बैठेगा लेकिन वर्तमान की हकीकत तो ये है कि भाजपा की गुटबाजी का नुकसान आने वाले दिनों में देखने को मिलेगा। चुनाव में समय है लेकिन आमने-सामने हुई भाजपा इस संकट से उबर पाती है या नहीं, आपसी सुलह के आसार है या नहीं ये सब बातें भविष्य के गर्भ में है। इतना जरूर है कि किसी भी संगठन को कमजोर करने वाले नेतृत्व को बेहद ही संकट के दौर से गुजरना पड़ेगा।