जयपुर. जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री डॉ. महेश जोशी ने कहा कि भारत सरकार की वेबसाइट पर जल जीवन मिशन की प्रगति में देश में राजस्थान को 29 वें स्थान पर दिखाया गया है जबकि हकीकत यह है कि इस गणना में देश के विभिन्न राज्यों की तुलना उनकी भौगोलिक परिस्थिति का आकलन किए बगैर की गई है। राजस्थान में जल जीवन मिशन की शुरूआत के समय 15 अगस्त 2019 की स्थिति में राजस्थान में 11.74 लाख घरों में घरेलू जल संबंध थे। 2019 से लेकर अब तक प्रदेश में 13.88 लाख नए घरों को लाभांवित किया जा चुका है यानी जल संबंधों में कुल 128 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वास्तविक स्थिति यह है कि कुल जल संबंधों की संख्या के आधार पर राजस्थान देश में 14 वें स्थान पर आता है।
डॉ. जोशी ने कहा कि राज्यों की कुल जनसंख्या एवं कुल घरों की संख्या में बहुत अंतर है जैसे उत्तर प्रदेश में 264 लाख, राजस्थान में 105 लाख व अरूणचल प्रदेश में 2.20 लाख जबकि दादरा एवं नागर हवेली में 85 हजार घर हैं। ऐसे में, छोटे राज्य बहुत ही कम जल संबंध जोडऩे के बावजूद तुलनात्मक स्थिति में राजस्थान जैसे राज्यों से बहुत बेहतर स्थिति में नजर आते हैं। इसी प्रकार दादरा एवं नागर हवेली में महज 85 हजार, गोवा में 64 हजार, अंडमान निकोबार में 33 हजार और पुडुच्चेरी में 21 हजार जल संबंध जोड़कर ही ये राज्य शत प्रतिशत उपलब्धि की श्रेणी में आ गए हैं। ऐसे ही, हरियाणा जैसे बडे राज्य लगभग 13 लाख जल संबंध जारी करके शत प्रतिशत की श्रेणी में आ गए हैं। राजस्थान को इन समस्त राज्यों से अधिक जल संबंध जारी करने पर भी 29 वें स्थान पर दर्शाया गया है। इस प्रकार की तुलना से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है कि राजस्थान जैसे कुछ राज्य जिन्होंने मिशन में बेहतर कार्य किया है वे तालिका में उचित स्थान पर दर्शाए नहीं जा रहे हैं।
राजस्थान में एक अप्रेल 2022 की स्थिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 105.69 लाख परिवारों को जल जीवन मिशन के तहत जल कनेक्शन दिए जाने हैं। यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि राजस्थान से अधिक जल संबंध जिन राज्यों ने जारी किये हैं उनमें से अधिकांश में प्रचूर मात्रा में जल संसाधन उपलब्ध हैं, जबकि राजस्थान में पानी की उपलब्धता कम होने, स्रोतों की दूरी अधिक होने एवं आबादी बिखरी होने के कारण न सिर्फ योजनाओं की लागत काफी अधिक आती है बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन में भी अधिक समय लगता है। भौगोलिक परिस्थिति एवं प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता के अनुसार भी राज्यों में बहुत अधिक अंतर है। कुछ राज्यों जैसे कि बिहार, बंगाल, तेलंगाना, मध्य प्रदेश व गुजरात आदि में निरंतर बहने वाली नदियां अथवा सदृढ नहरी तंत्र के कारण सतही जल एवं भूजल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इससे इन राज्यों में न सिर्फ योजनाओं की लागत कम आती है, बल्कि योजनाओं के क्रियान्वयन में भी समय कम लगता है, जबकि राजस्थान में इन दोनों स्त्रोतों की अत्यधिक कमी होने के कारण योजनाओं की लागत अधिक आती है।
जलदाय मंत्री ने कहा कि जल जीवन मिशन में अब तक जहां कुल पैसा खर्च करने की बात है तो यह स्पष्ट है कि राजस्थान द्वारा मिशन के तहत शुरूआत से लेकर अब तक कुल 6529 करोड रूपये व्यय किये गए हैं जो कि देशभर में चैथे स्थान पर है। उन्होंने कहा कि राजस्थान की उपलब्धि और भी बेहतर हो सकती थी, किन्तु मिशन के क्रियान्वयन में कोविड-19 एवं यूक्र्रेन-रूस युद्ध के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में जल योजनाओं के विभिन्न घटकों के दामों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के कारण राज्य की प्रगति पर प्रतिकूल प्रभाव पडा है। डॉ. जोशी ने कहा कि मिशन के तहत कुछ ऐसे राज्य, जहां विषम भौगोलिक परिस्थितियां हैं, वहां पर केन्द्र व राज्य की हिस्सा राशि का अंश 90:10 है। जबकि राजस्थान में दो तिहाई हिस्से में मरूस्थल व दक्षिण राजस्थान में पथरीला इलाका होने के बावजूद पर केन्द्र व राज्य का की हिस्सेदारी 50:50 है। देश की कुल गुणवत्ता प्रभावित गांव-ढाणियों में से 35 प्रतिशत राजस्थान में हैं। कई जिलों में बसावट छितराई हुई होने के कारण शुद्ध पेयजल दूर से पहुंचाना पड़ता है और फलस्वरूप लागत काफी अधिक आती है। इन परिस्थितियों में उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की कि राजस्थान को 90:10 के अनुपात में फण्डिंग उपलब्ध कराई जाए।