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swami vivekanand jayanti: स्वामी जी का वो ऐतिहासिक भाषण, जिसने शिकागो की धर्म संसद में बजाया था भारत का डंका

नई दिल्ली swami vivekanand jayanti: आज 12 जनवरी है यानी आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती। इसे ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। आज उस महान शख्सियत की जयंती को मनाने का दिन है। जिन्होंने दुनिया में भारतीय संस्कृति-विचारों का डंका बजाया था। 12 जनवरी 1863 को बंगाल में जन्मे स्वामी विवेकानंद धर्म, कला, दर्शन, साहित्य में कुशल थे। शिकागो में आयोजित धर्म संसद में जब उन्हे कम समय में बात कहने का मौका दिया, जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो वहां मौजूद लोग हतप्रभ रह गए और उन्हे सुनते ही चले।

स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति और विरासत की ऐसी प्रस्तुति दी जो इतिहास में अंकित हो गया, सदियां बीत जाने के बाद आज भी विश्वभर में इसकी चर्चा हर जुबां पर रहती है।

शिकागो में आयोजित धर्म संसद में भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद को बोलने का अवसर दिया गया, यह उस वक्त किसी भारतीय के लिए बड़ी उपलब्धि थी। 11 सितंबर 1893 को जब स्वामी जी मंच पर पहुंचे और अपना संबोधन शुरू किया, तो वहां मौजूद लोग भारत की अनमोल संस्कृति के मुरीद हो गए।

हिंदी में संबोधन से की भाषण की शुरुआत

अमेरिका में स्वामी जी ने अपने भाषण की शुरुआत लोगों को हिंदी में संबोधित करते हुए की। संबोधन की शुरुआत करते हुए जैसे ही उन्होंने कहा, ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ उनकी वाणी की ऊर्जा ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वामी विवेकानंद ने कहा-

अमेरिका में मेरे भाइयों और बहनों मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है। मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।

आगे संबोधन में स्वामी जी ने कहा-  मुझे गर्व इस बात का है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया और हम सभी धर्मों को स्वीकार करते हैं। जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग रास्तों से होकर समुद्र में मिलती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य भी अपनी इच्छा से अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते दिखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं लेकिन ये सभी ईश्वर तक ही जाते हैं।”

आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो,  स्वामी विवेकानंद के भाषण के बाद दो मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। इतिहास में यह दिन भारत के लिए गर्व और सम्मान के तौर पर दर्ज कर लिया गया।

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