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Bharat Ratna: … देश में एक ऐसे विधायक जिन्होंने कोट उधार लेकर की थी विदेश यात्रा, सादगी से जुड़े किस्से सुनेंगे तो रह जाएंगे हैरान

नई दिल्ली. Karpuri thakur Bharat Ratna Award: जननायक के नाम से मशहूर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा कर दी है।  केंद्र सरकार ने उनकी जयंती सेठ ठीक पहले ये सम्मान देने की घोषणा की।  कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24 जनवरी को मनाई जाती है। कर्पूरी ठाकुर 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से कई प्रमुख सुधार लागू किए थे। 24 जनवरी 1924 को बिहार के छोटे से गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर मजबूत नेतृत्व कौशल और लोगों के कल्याण के प्रति अपने समर्पण के लिए पहचाने जाते है।  ठाकुर बेहद साधारण पृष्ठभूमि से थे और कई चुनौतियों के बावजूद, वह अपनी शिक्षा पूरी करने में सफल रहे। ठाकुर महात्मा गांधी की शिक्षाओं से प्रभावित थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थे।

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सादगी भरा था ठाकुर का जीवन

राजनीति में लंबा समय रहने के बाद भी जब उनका निधन हुआ तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था न तो पटना में और न ही वह पैतृक घर में एक इंच जमीन जोड़ पाए। उनकी ईमानदारी से जुड़े कई किस्से आज भी बिहार में सुनने को मिल जाएंगे। उनके जीवन से जुड़े कई किस्से नई पीढ़ी को प्रेरणा देते हैं।

1952 में पहली बार बने थे विधायक

कर्पूरी ठाकुर साल 1952 में पहली बार विधायक बने और उन्हें विदेश जाने का मौका मिला। ऑस्ट्रिया जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के लिए कर्पूरी ठाकुर का चयन किया गया था। ठाकुर विदेश जाने के लिए उत्सुक थे, लेकिन उनके पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहीं थे। ऐसे में उन्होंने अपने एक मित्र की मदद ली और उनसे कोट मांगा था। वहीं फटा हुआ कोट पहनकर उन्होंने विदेश की यात्रा की थी। BBC से बात करते हुए उनके बेटे रामनाथ ठाकुर ने यह किस्सा शेयर किया था। रामनाथ ठाकुर JDU से राज्यसभा सांसद हैं। रामनाथ ठाकुर ने बताया था कि वहां से वह यूगोस्लाविया गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है तब उन्हें एक कोट भेंट किया।

सादगी से जुड़े हैं कई किस्से

कर्पूरी ठाकुर की सादगी से जुड़ा एक किस्से का जिक्र यूपी के कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा ने भी अपने संस्मरण में किया था। उन्होंने लिखा था, कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था- कर्पूरीजी कभी आपसे 5-10 हजार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।

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जाने उनका राजनीतिक करियर

कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक करियर 1950 के दशक में तब शुरू हुआ, जब वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। वह तेजी से पार्टी में एक प्रमुख नेता बन गए। ठाकुर अपने मजबूत सिद्धांतों और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे। 1970 में ठाकुर को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। ठाकुर की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण नीति का कार्यान्वयन था।

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